कुछ सही
कुछ ग़लत
कुछ इधर की
कुछ उधर की
कभी यहाँ
तो कभी वहाँ
मैं लिखता रहूँगा....
कभी ख़ुद की कहानी
कभी औरों की जुबानी
कभी कोई पहेली
कभी चंपा-चमेली
कभी गाथा किसी की
कभी दुविधा सभी की
मैं लिखता रहूँगा....
फूछ्ना मत
कि मैं कौन हूँ
क्यूँ मौन हूँ,
आवाज़ बचा रखता हूँ
सिर्फ़ तुझे परखता हूँ
कुछ सही फ़िर कुछ ग़लत
आकर तब मैं लिखता हूँ,
शब्द की घुटन कौन सहे
कब तक कोई मौन रहे
कोई सुननेवाला न हो
बोलो फ़िर वो कैसे कहे,
ये कलम एक माध्यम है
अपनी घुटन मिटाने का
अपना जादू दिखाने का
शब्दों में उलझाने का
मैं बार-बार
तुझसे पिटता रहूँगा
पर लिखता रहूँगा।
Monday, February 05, 2007
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