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आलोकित संसार
Thursday, February 15, 2007
खंजर
एक लोहा था बहुत नरम
सब लोहों का मित्र परम
एक दिन भट्टी में कूद गया
तपकर हो गया गरम-गरम,
एक हथोडा चला फ़िर उसपर
विस्तृत उसका आकार हुआ
खंजर का स्वरुप लिया
वह
चमकीला उसका धार हुआ.
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आलोकित संसार
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आलोक कुमार
IRPFS 2015 (CSE 14)
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Social Currents
इन लहरों से टकराकर
कश्ती टूटे साहिल छूटा,
इन शहरों में तो आकर....
मैं
एक
चितेरा
इस
युग
का
पकड़
तुलिका
हाथों
में
रंग
बिखराता
हूँ
जीवन
के
इस
कैनवास
पर
इन सितारों का जीवन
कई पहेलियों से भरा है,
हर एक सितारा यहाँ
कई सितारों से घिरा है ..
मैं एक उगता सूरज भी था
सब करते थे मेरा अभिनन्दन..
मानो
पूनम
की
रात
है
और
मन
समुद्र
बनकर
ज्वार
-
भाटा
खेल
रहा
है :
)
समाज
से
कह
दो
मेरी
छवि
छीन
लें
अब
मैं
आत्मछवि
अपना
रहा
हूँ
....
ये
IIT
की
जिन्दगी
भी
जिन्दगी
है
क्या
?
साँस
लेने
तक
की
, फ़ुरसत
नहीं
यहाँ
.
सपनो की नौकाएं आती
जीवन रुपी सरिता में,
साहस का पतवार थामकर
नाविक कोई उतरता है;
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