Sunday, February 04, 2007

व्यक्तित्व














ये व्यक्तित्व
बतलाता है आपके विचार
बतलाता है आपके व्यवहार,
और लाता है आपमें
एक अद्भुत निखार;
ये पारदर्शी होता है
दूर से ही झलक जाता है
नजरों में छलक जाता है
जब भी एक दरश पाता है.

तो क्या वो
शीशे की तरह तुनक होता है
जो गिरते ही अपना अस्तित्व खोता है,
ये तुनक नहीं
गीली मिटटी की तरह
मुलायम होता है
जो गिरकर अस्तिस्त्व नाहीं
अपना आकार खोता है,
गीली मिटटी जो आकार चाहे पा सकता है
उसे कैसा भी बनाया जा सकता है,
निर्भर करता है कुम्भकार पर
वो कितना ध्यान देता है
किसको कैसा रूप देता है,
सचमुच ही व्यक्तित्व
खत्म नहीं होता
बस स्वरुप बदलता है,
पर जो चोट खाकर भी
अपना आकार नहीं खोता है
वो कोई परिपक्व होता है
ये परिपक्वता आती है
जब माटी आग में तपता है
व्यक्तित्व ठोकरें सहता है...
आज फ़िर कोई मिटटी पककर तैयार है
फ़िर से हर्षित कोई कुम्भकार है॥

-Poet fantasy about his personality-


2 comments:

Vikash said...

I didnt know about u guys going to chaos. How was the experience???? Any winning...???

Read about the 3rd in play comp (in ur previous post)...congrats

आलोक कुमार said...

dhanyawaad...bahut din baad comment aaya hai :))