एक बदलाव
बदल देती परंपरा
नियम जाती चरमरा
रिश्तों को तोड़ देती है
कोई ज़ंग छेड़ देती है,
किसी एक सपने के लिए
कितने सपने टूट जाते हैं
कोई एक आगे आता है
कितने छूट जाते हैं,
क्या परंपरा सही नहीं है
जो बातें गाँधी ने कही है
सच तो ये है
की कमजोर तुम हो
ख़ुद को नहीं बदल सकते हो
इसलिए दुनिया बदलने चलते हो...
दुनिया बदलते ही रहते हैं
अगर बदलना कुछ चाहते हो
तो पहले ख़ुद को बदलो
फ़िर दुनिया भी बदलेगा
इक परंपरा पर चलेगा
इक बदलाव आएगा
कोई सैलाव छायेगा
नहीं कोई रिश्ते टूटेंगे
नहीं कोई ज़ंग फूटेंगे
फ़िर ये जग अपना होगा
हर इक का सपना होगा....
-hmmm poet is philosophical here-
Monday, February 12, 2007
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