बात है तब की जब मैं jnv में दाखिला लिया था,कक्षा का वो पहला दिन था ......
अध्यापिका और लड़के-लड़कियों से भरी उस कक्षा में मैं अपने आप को अकेला पा रहा था। पर मेरे अंदर के मनोभावों को वो समझ गई थी. वो मेरे पास आई और ...फिर स्नेहपूर्वक पूछी....चलो अपना नाम बताओ ...
अलोक..अ अ अलोक...मैंने बिल्कुल ही फुसफुसाते हुए कहा। मैं अंदर से काँप रह था.चलो कुछ जोर से कहो ताकि सब सुन सके...अद्यापिका बोली. मैंने जोर से बोलने की कोशिश की...पर मेरे शब्द गले से निकल नही पा रहे थे, अधर सूख सा गया था। मुझे दिन में भी तारे नजर आने लगे, मैं अपनी मनोस्थिति पर काबू नही रख पाया था.
वो मेरे झिझक को समझ गई....और स्नेह से बोली...चलो अपना नाम ब्लैक बोर्ड पर लिख दो. मैं वहा तक पहुँचा...पर ये क्या,मैं कुछ नही लिख पा रहा था। मुझे अपना नाम भी याद था और मुझे अच्छी तरह लिखना भी आता था । पर हाथों में अजीब कम्पन थी, दिल की तीव्र धरकन थी। एक झिझक ही थी वह जो मुझे ख़ुद को व्यक्त नही करने दे रही थी । मेरे दोस्त लोग मुझे समझे नही...और मैं अपनी झिझक का शिकार बन गया.
आज भी मेरे अन्दर वही झिझक बरक़रार है...और आज भी मेरे दोस्त मुझे समझ नही पाते हैं.....और मैं बार-बार शिकार बन जाता हूँ.
Saturday, January 28, 2006
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1 comment:
us samay main kavi man kya...apne man ko bhi yaad nahi rakh paata hoon....
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