Tuesday, January 31, 2006

प्रेम-संवाद

orkut का एक यादगार संवाद...

विकास : हुश्न के झांसे में न आओ, मात खाओगे
ध्यान से देखो तो चाँद भी पत्थर का है.

अलोक: चाँद अगर पत्थर है तो क्या
देखो तो बादल सिर्फ़ धुँआ है.
चाँद भी तब-तब चुप जाता है
बादल ने जब-जब उसे छुआ है.

विकास: डालो भले ही फूल तुम...उस हँसी की राहों में
उसको मगर है यह यकीं...की हर डगर पत्थर का है.


अलोक: पत्थर की है हर डगर पर
चलना उसपर दूभर नही है
उन डगरों के हर पत्थर पर
इन फूलों को मैं बिछा दूंगा.

विकास: तिनके न तुम जुटाओ यूँ आशियाने के लिए...
चाहे दिखे या न दिखे, हर घर मगर पत्थर का है.


अलोक: महल भी हैं सब पत्थर के पर
रहना सारी उमर वहीँ है,
इन तिनको से आशियाने नही
उन महलों को सजा दूंगा.

विकास: nice lines.
keep it up!!

पर शायद विकाश सही थे...मेरी बातें तो वास्तविकता से परे थी.

1 comment:

Vikash said...

i'm flattered that u have given me some space in ur 'alokit sansaar'