Saturday, January 28, 2006

असफलता भी कुछ बतलाती है

असफलताओं से हम टूट क्यों जाते हैं,
जीवन से फ़िर हम रूठ क्यों जाते हैं.
आसपास के सफल माहौल को देखकर,
उस माहौल से हम उठ क्यों जाते हैं.

अगर हम बार-बार सफल होते तो,

अगर हम हर बार सफल होते तो

जीवन में तरंग ना उठ पाता,

परिवर्तन ना कोई रह पाता.
उस तालाब के जल की तरह,
स्थिर सा वह भी रह जाता.

फिर गति क्या रहती जीवन में,

राहों में कोई मोड़ ना पाते,
रह जाते चलते सीधी डगर पे,
अगर उसे ये तोड़ ना जाते.

बढ़ तो जाता फिर गरूर अपना,

चढ़ जाता कुछ शरूर अपना.
अपने को फिर हम आँक ना पाते,
औरों के अंदर झाँक ना पाते.

असफलताएं ये कुछ सिखलाती हैं,

मार्ग नए कुछ दिखलाती हैं.
दर्प-दंभ मन के अंदर है जो,
तोड़-तोड़ उसे बिखराती हैं.

ताकि तुम भी नव उमंग भर,

विधि को बस में करना सीखो.
सफलता की चोटी को छूने,
पत्थरों से भी लड़ना सीखो.

No comments: