तुमने मुझको छेड़ दी साकी
मैं ख़ुद पर ही शरमा गया,
मैं तो कुछ नही कह सकता
पर ये नन्हा खिलाड़ी आ गया.
गौर से देखो इस नन्हे को
और पूछो ये क्या कहता है,
मेरे ह्रदय के तार-तार में
ओ साकी बस तू रहता है.
बैठा मैं हूँ इस उपवन में
फूल खिले हैं सुंदर-सुंदर,
मुझे इन फूलों से क्या लेना
झाँक रहा मैं तेरे अंदर.
इस तरह मत देखो साकी
इस नन्हे की ओर कभी,
खाली हाथ अभी तक लौटे
जो गए इस ओर सभी.
अच्छा तो अब मैं चलता हूँ
धन्यवाद तुमको कहता हूँ,
माफ़ करना ये बच्चा है
पर दिल का बिल्कुल सच्चा है।
-what do I mean by this poem-
Sunday, January 29, 2006
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1 comment:
chutiyap likhna band kar...:X
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